मंगलवार, 6 जुलाई 2021

POWER OF POSITIVE THINKING / wilma rudolph

 सोच की जीत , @विल्मारूडोल्फ , POWER_OF_THINKING,  जहां चाह वहां राह

 सोच को बदलो सितारे बदल जाएंगे ,नजर को बदलो नज़ारे बदल जाएंगे //

कश्तियाँ बदलने की जरूरत नहीं , दिशाओं को बदलो किनारे बदल जाएंगे //              

नेपोलियन हिल कहते हैं --- सफलता को किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं होती और असफलता के लिए कोई बहाना नहीं होता //

दोस्तों आज के इस अत्याधुनिक युग में जहाँ पर सर्व साधन सुलभ है / टेक्नालाजी चरम पर है, फिर भी लोग बेरोजगार हैं , और इससे भी ज्यादा हास्यास्पद तब होता है जब कुछ लोगों के मुख से सुना जाता है कि केवल पैसा ही पैसे को बना सकता है/

विल्मा रूडोल्फ जिसके बारे में अधिकतर लोग जानते हैं , फिर भी प्रकृति की उस सर्वोत्तम शक्ति को नहीं मानते हैं , जो आपके अन्दर निहित है / जिसके द्वारा दुनियां की हर एक वस्तु या कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है, जिसे आप मन से चाहते हैं / वो शक्ति है ..कल्पना की शक्ति , आपकी सोच की शक्ति /

कहते हैं ..... जहां चाह वहां राह

समझते हैं एक सच्ची घटना के माध्यम से -----

विल्मा रूडोल्फ एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी थी / जब वह 4 वर्ष की हुई , तो उसे भयंकर निमोनियां हो गया , जिसके कारण वह पोलियो ग्रस्त हो गयी ,और वह एक पैर से विकलांग हो गयी / डॉक्टर ने उसके पैर में ब्रेस पहना दिया और कहा कि, अब वह अपने इन पैरों से कभी नहीं चल पाएगी /

विल्मा रूडोल्फ की माँ नें अपनी बच्ची के मन में एक सकारात्मकता का बीज बो दिया / उन्होंने अपनी बच्ची से कहा कि तू जरूर चलेगी / तू हिम्मत न हार और खुद पर विश्वास रख /

विल्मा ने अपनी माँ से पूछा – माँ क्या मैं दौड़ भी सकूंगी, तो माँ ने कहा हाँ बेटा तू जरूर दौड़ेगी /

इस प्रकार से माँ ने बेटी को कदम कदम पर प्रोत्साहित किया / विल्मा रूडोल्फ पर अपनी माँ के उत्साह वर्धन का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा और उसने भी ठान लिया कि  वह ऐसा करके दिखाएगी /

अब उसने अपने पैर से ब्रेस उतार दिया, और धीरे धीरे प्रतिदिन चलने का प्रयास करने लगी / कई बार गिरी , फिर उठी ,लेकिन हिम्मत नहीं हारी और अपने अथक प्रयास के बाद धीरे धीरे चलने लगी /

13 वर्ष की उम्र में अपने स्कूल की दौड़ में हिस्सा लेना शुरू किया, और बार बार पराजित हुई, लेकिन उसकी जिद नें वो भी दिन लाया जब वो प्रथम बार दौड़ में जीत भी गई /

और उसकी उम्मीदें और भी बढ़ गयी / 15 वर्ष की उम्र में वह वह TENNESSEE STATE UNIVERSITY पहुंची, और TEMPLE नामक एक कोच से मिली /

पता है आपको विल्मा ने कोच से क्या कहा ? सुनना चाहेंगे ? यकीन करेंगे आप ?

तो आगे पढ़िए ...

उसने कोच से कहा कि मैं दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ/” कोच को यकीन नहीं हो रहा था / लेकिन विल्मा रूडोल्फ की लगन , निष्ठा और दृढ़ संकल्प को देखकर कोच ने कहा –

तुम्हें कोई नहीं रोक सकता तुम्हारे सपने पूरे करने से और मैं तुम्हारी मदद करूंगा , तुम्हें ट्रेनिंग दूंगा /”

वर्ष 1960, वह दिन भी आ गया , जिसका विल्मा रूडोल्फ को बेसब्री से इंतजार था / उसने 1960 के ओलम्पिक खेलों में हिस्सा लिया /

विल्मा का मुकाबला एक ऐसी धाविका से था , जिसने कभी भी कोई रेस हारी ही नहीं थी / नाम था जुत्ता हायने (JUTTA HEINE) /

रेस 100 मीटर की ---

अब पहली दौड़ 100 मीटर की हुई / विल्मा ने कभी न हार मानने वाली धाविका जुत्ता हायने को हरा दिया, और अपने जीवन का पहला स्वर्ण पदक जीत लिया /

रेस 200 मीटर की ---

अब दूसरी रेस थी 200 मीटर की / इस रेस में भी विल्मा के मुकाबले में एक बार फिर जुत्ता ही थी / अब इस रेस में भी विल्मा ने इस प्रकार दौड़ लगाई की उसने इस रेस को भी जीत लिया और दूसरा स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया /

रेस 400 मीटर की ---

  अब बारी थी तीसरी रेस 400 मीटर की बेटन रिले रेस / इस रेस में भी जुत्ता हायने मुकाबले में थी / इस रेस के नियम में सबसे तेज धावक सबसे अंत में रखा जाता है / इस रेस में तीन धावकों के दौड़ने के बाद जब बेटन ,विल्मा को दिया गया तो बेटन विल्मा के हाथ से गिर गया , लेकिन विल्मा ने जुत्ता को आगे बढ़ते हुए देखा , तुरंत बैटन उठाया और इतनी तेज गति से मशीन की तरह दौड़ी और काँटे के मुकाबले में एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की / और इसी के साथ अपने सपनों को  साकार करते हुए तीसरा स्वर्ण पदक जीत लिया /

        विल्मा रूडोल्फ ने सिर्फ जुत्ता हायने को ही नहीं हराया, बल्कि प्रकृति , भाग्य और परिस्थिति को भी हराया / आपको लगता है की एक विकलांग लड़की पूर्ण रूप से एक स्वस्थ रेसर को हरा दे, जिसने कभी कोई रेस हारी ही न हो ! लेकिन ये सच है उसने ऐसा कर दिखाया /

   प्रकृति और भाग्य ने विल्मा को विकलांग बनाया / परिस्थिति ने उसे गरीब बनाया था / डॉक्टर नें भी कह दिया था कि विल्मा अपने पैरों पर कभी नहीं चल पाएगी /

    लेकिन विल्मा रूडोल्फ का एक सपना , एक सोच ,एक स्वस्थ विचार जो उसने अपने मस्तिष्क के किसी कोने में बो दिया था / लगन ,जिद ,साहस ,निष्ठा आदि से विल्मा ने इस बीज को अंकुरित किया, और आगे तब तक सीचती रही जब तक की उसके सपनों का ये पेड़ हकीकत में नहीं बदल गया / जो आज और सदियों तक बहाने बनानें वाले और बात बात पर रोना रोनें वालों के गाल पर तमाचा है /

    इंसान गरीबी से नहीं हारता / इंसान परिस्थितियों से नहीं हारता / अगर वह हारता है तो बड़े सपने देखने से / अगर वह हारता है तो खुद पर विश्वास न करने से / अगर वह हारता है तो बहाने बनाने से, और खुद से ही झूठ बोलने से /

   बेरोजगारी , लाचारी , बीमारी ये इंसान के सामनें कुछ भी नहीं हैं अगर प्रत्येक इंसान सपने देखना शुरू करदे , उसे हकीकत में बदलने के लिए रात दिन एक कर दे / क्योकि विल्मा रूडोल्फ जैसी लड़की जो की अपंग थी / लेकिन दुनियां के सामने झुकना नहीं सीखा / अपने आपको लाचार और बेबस नहीं समझा /तो दोस्त आपके पास तो ईश्वर की दया से पांचो इन्द्रियाँ सुसज्जित हैं /

          जीतना है तो जिद करना पड़ेगा  , जीतना है तो ठानना पड़ेगा , जीतना है तो सीखना पड़ेगा /

           एक कामचोर कभी विजेता नहीं बनता और एक विजेता कभी इरादा नहीं छोड़ता //

 

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जय हिन्द //     

 

 

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