सोमवार, 26 जुलाई 2021

Arunima Sinha ,The Legend Story In Hindi

संघर्ष , जिद ,संकल्प और मौत से लड़कर जीतने की सच्ची कहानी Arunima Sinha 

सफलता पाने के लिए अक्सर लोग अनेक टिप्स की खोज करते रहते हैं / सफलता के मन्त्र की जानकारी ढूढते रहते हैं / लेकिन जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता अर्जित करने का सबसे अच्छा और शार्ट कट तरीका एकमात्र है कि, जिनकी तरह आप बनना चाहते हैं ,उन्हें अपना गुरु या आदर्श मान लीजिए / और दृढ़ता , विश्वास के साथ इनके पदचिन्हों पर चलिए / आप सफल हो जाएंगे /

लेकिन एक अटल सत्य है , कि आपके अन्दर स्वयं के प्रति आपका विश्वास , आपका जूनून , आपका संकल्प और सकारात्मक सोच ही आपको सफलता दिलाती है /

ऐसी ही एक कहानी प्रथम एवरेस्ट फ़तेह करने वाली पर्वतारोही दिव्यांग महिला अरुणिमा सिन्हा की है / जिहोने साबित किया कि इंसान शरीर से कैसा भी अपाहिज हो ,लेकिन वह अगर अपने मस्तिष्क से अपाहिज नहीं है और उसके इरादे पक्के हैं ,तो वह कुछ भी कर सकता है /

अरुणिमा सिन्हा का जन्म और शिक्षा ---

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 10 जुलाई 1988 को उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जिले में हुआ था / इनके पिता सेना में लांसनायक थे / अरुणिमा जब चार साल की थी , तभी इनके पिता की मृत्यु हो गयी /

अरुणिमा की प्रारंभिक शिक्षा - दीक्षा गृह जनपद से ही हुई / इन्होने समाजशास्त्र से मास्टर डिग्री हासिल की है / अरुणिमा सिन्हा को खेलों में बहुत रूचि थी / अपने कॉलेज पीरियड से ही बालीवाल को राष्ट्रीय स्तर पर खेला है / इसके साथ ही नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनिरिंग से पर्वतारोहण की ट्रेनिंग भी ली है /





कैरियर और संघर्ष की आगे की कहानी ----- 

अपने कैरियर को एक नया आयाम देने के लिए अरुणिमा सिन्हा ने CISF  की पोस्ट के लिए आवेदन किया / 21 अप्रैल 2011 को उसकी परीक्षा के लिए उन्हें लखनऊ से दिल्ली जाना था , तो इन्होने पद्मावती एक्सप्रेस का टिकट कराया ,और ट्रेन से दिल्ली के लिए रवाना हो गयी /

रात्रि के करीब एक बजे कुछ बदमाश ट्रेन पर चढ़े और सभी का चेन खीचने लगे / उसी में अरुणिमा का चेन और बैग भी वो लोग लेने लगे / जिसका अरुणिमा ने विरोध किया / जिसके कारण बदमाशो ने इन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेक दिया / ट्रेन से जैसे ही ये नीचे गिरी , दूसरे ट्रैक से भी कोई ट्रेन आ रही थी / अपने आपको बचाने में इनका एक पैर ट्रेन के नीचे आ गया और कट गया / रात्रि होने के कारण किसी को इस हादसे के बारे में पता भी नहीं चला / और अरुणिमा ट्रैक पर 7 घंटे पड़ी रही और जिन्दगी और मौत से लड़ती रही / कहते है उसी बीच में लगभग 49 ट्रेनों का आवागमन हुआ था , और अधिकतर ट्रेने इनके पैरो पर से ही गुजरी थी ,जिसके कारण बायाँ पैर अलग हो गया था / कुछ लोगों ने जब इन्हें देखा तो इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया / जहां पर इनके जीवन को बचाने के लिए अरुणिमा का बांया पैर डॉक्टर्स ने कट कर दिया /

अरुणिमा की जान तो किसी तरह बच गयी ,लेकिन इन्हें अपने एक पैर से हाथ धोना पड़ा / और अब एक खिलाड़ी का कैरियर दांव पर लग गया / इनका बालीवाल खेलने का सपना और मौका छिन गया /

अब आल इंडिया इंस्टीटयूट ऑफ़ मेडिकल कॉलेज में इन्हें चार महीने तक भर्ती किया गया था , जहाँ पर इन्हें कृत्रिम पैर लगाया गया था / इस एक्सीडेंट का इनके दिलों दिमाग पर गहरा झटका लगा / कि अब आगे क्या और कैसे किया जाए /

अब इनके सामने दो रास्ते थे / या तो ये जिंदगी से हार मान ले और और इस दुनियां की भीड़ में कहीं गुम हो जाएं , और या तो अपने दर्द को सहते हुए ,इस चैलेन्ज को स्वीकारते हुए कुछ ऐसा कर दिखाए जो आज तलक इतिहास में कभी न हुआ हो /

तब अरुणिमा सिन्हा ने दूसरा रास्ता चुना / जिंदगी और मौत से एक बार तो सामना हो ही चुका था / अब डर कैसा ? गुमनामी के अंधेरों से तो अच्छा है ,कुछ बेहतर करते हुए जीवन को समर्पित कर देना /  

अस्पताल में रहते हुए ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर भारत का झंडा गाड़ने का मन बना लिया / अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद अरुणिमा सिन्हा ने भारत की पहली माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली महिला बछेंद्री पाल से मिलने पहुँच गयी / वहां से प्रेरणा लेकर नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाने के इरादे लिए टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन से पर्वतारोहण का दो साल का प्रशिक्षण लिया /

और फिर तमाम अलग अलग पर्वतों की चोटियों पर चढ़ाई करके जीत हासिल करते हुए एवरेस्ट को भी फतह कर लिया /

एवरेस्ट पर चढ़ना एक कृत्रिम पैर के सहारे आसान न था / चढ़ाई के दौरान भी इनके साथ एक घटना घटित हो गयी / इनका कृत्रिम पैर इनके शरीर से अलग हो गया / और इनका आक्सीजन भी ख़त्म हो गया था / लेकिन दिमाग ने एक बार फिर कहा , जीना है और जीत हासिल करनी है / और इन्होने जान जोखिम में डालकर एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी की /

दोस्तों इस प्रकार की MOTIVATIONAL और INPIRING कहानियाँ हम इसलिए नहीं पढ़ते कि इसे पढ़कर मात्र मनोरंजन करना है , बल्कि इसलिए पढ़ते हैं कि हमारे मन के सपने भी बाहर निकल सके / हम भी एक संकल्प लेकर आगे बढ़ सके / तमाम बाधाओं को अपने जिद और विश्वास से तोड़ सके / और अपने हार को भी जीत में बदल सके /

सोचिए ... पैर कट गया , 7 घंटे ट्रैक पर लावारिस पड़ी रही , अपने सामने मौत का तांडव देखती रही , 49 ट्रेने भी गुजर गयी , पर इस बंदी ने हार नहीं मानी /

कृत्रिम पैर के दम पर एवरेस्ट पर चढ़ी /  वहां पर भी मुसीबत ने साथ नहीं छोड़ा / कृत्रिम पैर अलग हो गया , ब्लीडिंग होने लगी , आक्सीजन ख़त्म हो गया पर इसने हार नहीं मानी / मौत से लड़ती रही और जीत भी गयी /

ये कोई भाग्य नहीं ,बल्कि एक संघर्ष , खुद पर विश्वास और मौत सामने होने पर भी उससे दो दो हाथ करने की सच्ची कहानी है /

भाग्य और ईश्वर भी उन्ही का साथ देते हैं , जो अपना साथ खुद देते हैं / हाथों की चंद लकीरें आपकी किस्मत नहीं होती , बल्कि आप अपने साहस और कुछ कर दिखाने की जिद के दम पर इसे बदल सकते हैं /

ये कहानी आपको कैसी लगी ,और आप इससे कितने प्रेरित हुए COMMENTS जरूर करिए /

जय हिन्द //      

  

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