शहीदे आज़म ऊधम सिंह :- अंतिम संकल्प जो कर दिखाया
दोस्तों संकल्प की ताक़त से बहुतों ने ऐसे-ऐसे काम किए हैं, जो देखने में बिलकुल असंभव सा प्रतीत होता है / वास्तव में संकल्प लेने के बाद अगर, आपके अन्दर उसे पूरा करने का जूनून हो तो, परिस्थितयां कोई मायने नहीं रखती हैं , बस आपको अपने संकल्प को पूरा करने के लिए जान की बाजी तक लगाने के लिए तैयार रहना है /
आज हम आपको एक ऐसे ही देशभक्त की कहानी सुनाते हैं , जिसे सुनकर अच्छे अच्छों के रोगटे खड़े हो जाते हैं ,और हर एक देशभक्त भारतीय का सर गर्व से ऊंचा हो जाता है , और श्रद्धा से मस्तक अपने आप उनकी स्मृति में झुक जाता है /
जब देश अंग्रेजों का गुलाम था , तो उस गुलाम भारत में एक अंग्रेज अधिकारी जो की बहुत ही कुख्यात और क्रूर था, शासन करने के लिए भेजा गया था / उसका नाम था डायर / पंजाब राज्य के अमृतसर में उसकी पोस्टिंग हो गयी थी / आते ही उसने एक “रालेट एक्ट” नाम का क़ानून बना दिया था / उस एक्ट के विरोध में 14 अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग़ में एक बड़ी जन सभा हुई थी , जिसमें करीब 25 हजार देशभक्त भारतीय शामिल हुए थे / जलियावाला बाग़ के उस आम जनसभा पर डायर ने चारों तरफ से घेराबंदी करके अंधाधुंध गोलियां चलवाई थी /
अगर आप में कोई जलियावाला बाग़ गया हो तो, आपको जरूर पता होगा कि जलियावाला बाग़ में अन्दर जाने और बाहर निकलने का सिर्फ एक ही दरवाजा है ,और वो भी लगभग 4 से 5 फिट केवल / इसके अलावा पूरा का पूरा जलियावाला चहार दीवारी से घिरा हुआ है / जो एक मात्र दरवाजा है, उस पर डायर ने तोप लगा रखी थी ,कि कोई भी जीवित बच कर भाग न पाए / उस जलियावाला बाग़ में दो कुँए भी हैं , जिन्हें आज अंधे कुँए के रूप में जाना जाता है /
जब 15 मिनट में चारों तरफ से डायर ने ताबड़तोड़ 1650 राउंड गोलियां चलवाई तो जान बचाने के वास्तें बहुत लोग उस कुँए में कूद गए ,और देखते ही देखते पूरा का पूरा कुंआँ लाशों से भर गया , मृत शरीरों से पट गया / गोली चलवाने के बाद डायर हसतें और खिलखिलाते हुए वहां से चला गया , और इससे भी उसका मन नहीं भरा तो रास्ते में जाते हुए अमृतसर के सडकों के दोनों तरफ जो भी भारतीय दिखता उसे भी भून डालता और तोप के मुहं से रस्सी से बांधकर घसीटता चला गया /
इस काम के लिए उसे अंग्रेजी सरकार की तरफ से ईनाम भी मिला / उसका प्रमोशन हुआ ,पदोन्नति हुई और उसे भारत से लन्दन भेज दिया एक बड़े पद पर /
जब जलियावाला बाग़ हत्याकांड हुआ था, तो लोंगो के बीच में एक व्यक्ति शामिल था जिसका नाम था “ऊधम सिंह” / उस समय ऊधम सिंह की उम्र लगभग मात्र 11 या 12 साल की हुआ करती थी / चूंकि उस समय वो भी वहां थे, और उस हत्याकांड को अपनी आँखों से देखा था , तो डायर के लिए उनका खून खौल गया था, और उसी क्षण उन्होंने संकल्प ले लिया था कि, जिस डायर ने क्रूरता के साथ मेरे भारत के निरपराध वासियों की हत्या की है, मैं उस डायर को नहीं छोडूंगा / यह मेरे जीवन का आखिरी संकल्प है / और इस असंभव संकल्प को पूरा करने के लिए शहीदे आज़म ने कोई कसर नहीं छोड़ी /
दोस्तों मैंने इस संकल्प को असंभव कहा क्योकि शहीदे आज़म ऊधम सिंह की जो परिस्थिति थी , उसके हिसाब से ये करना असंभव ही था / क्योकि शहीदे आज़म ऊधम सिंह घर से अत्यंत गरीब थे / माता – पिता का साया उनके सर से उठ चुका था ,अनाथ आश्रम में पले बड़े हुए थे / एक बड़े भाई थे , जिनकी किसी बीमारी के कारण मृत्यु हो चुकी थी / अपने परिवार में वो एकदम बिलकुल अकेले रह गए थे / आर्थिक संसाधन के रूप में उनके पास कुछ भी नहीं था / आखिर ऐसा व्यक्ति डायर को कैसे मारता वो भी लन्दन जाकर जिसके पास कुछ था ही नहीं /
लेकिन शहीदे आज़म संकल्प ले चुके थे , भारत माता के इस लाल का रक्त बदला लेने ले लिए उबाल खा रहा था / उन्होंने योजना बनाई कि लन्दन जाना है और लन्दन जाने के लिए पैसे चाहिए / और पैसों का इंतजाम कैसे हो ? तो उन्होंने तय किया कि किसी के सामने हाथ फैलाऊँ ,उससे अच्छा है कि मेहनत मजदूरी करके पैसे कमाऊँ / तो उन्होंने कारपेंटरी यानि बढई गीरी का काम सीखा , और काफी दिनों तक इस काम को करते करते इतना पैसा जमा कर लिए कि वो अमेरिका पहुँच गए ,और अमेरिका से लन्दन पहुँच गए / शहीदे आज़म ने लन्दन पहुँच कर फिर एकबार एक होटल में काम करना शुरू किए ,पानी पिलाने का काम किया / ताकि जो पैसे इकट्ठे हों उनसे बन्दूक या पिस्तौल खरीदी जा सके /
आप सभी को बता दें कि ये सब काम करते करते शहीदे आज़म ऊधम सिंह को 21 साल लग गए / जी हाँ 21 साल / जलियावाला बाग़ हत्याकांड 1919 में हुआ था और शहीदे आज़म ऊधम सिंह ने 1940 में अपना संकल्प पूरा कर पाए थे / दोस्तों 21 साल पैसों के लिए परिश्रम के साथ अपने सम्पूर्ण जीवन को लगाते हुए सिर्फ और सिर्फ अपने संकल्प के लिए जिन्दा थे /
21 साल बाद सन 1940 में लन्दन में एक जगह है किंगसन पैलेस , वहां पर डायर का एक बड़ा कार्यक्रम हो रहा था / उसकों मालाएं पहनाई जा रही थी और उसका सम्मान किया जा रहा था / उस कार्यक्रम में ऊधम सिंह जी भी पहुँच गए थे / और मौक़ा पाते ही अपनी जेब से रिवाल्वर निकालकर ताबड़तोड़ तीन गोलिया डायर को मारी / डायर वही पर मर गया / और डायर को तीन गोलियां मारने के बाद शहीदे आज़म ऊधम सिंह ने सिर्फ एक वाक्य कहा था “ आज मैंने 21 साल पहले का मेरा संकल्प पूरा किया है ,और मैं इसके बाद अब एक मिनट भी जिन्दा नहीं रहना चाहता / अब मुझे एक मिनट भी जिन्दा नहीं रहना है/ अब मेरे दिल की इक्षा पूरी हुई है /”
इसके बाद उन्होंने एक अंग्रेज अधिकारी को अपना रिवाल्वर सौपा / तो अंग्रेज अधिकारी के हाथ काँप रहे थे कि, कहीं ये मुझे भी न मार दे ? तो ऊधम सिंह जीने कहा घबराओ मत / मेरी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है / मेरी दुश्मनी तो डायर से थी ,जिसने मेरे देश के 3 हजार लोंगों को मारा था /
क्रांतिकारियों का इतना ऊंचा आदर्श कि जो संकल्प लिया उसी के लिए पूरा जीवन खपा दिया / परिस्थितयां कुछ भी रही हों ,लेकिन जो ठान लिया तो उसी की पूर्ति के लिए क्या 10 साल क्या 15 या 20 साल , बस जीना है तो भारत माता के लिए और मरना है तो उसी के लिए /
जो हाथ में लिया तो पूरा किया , नहीं कर पाए तो शहीद हो गए / और आज उन्ही संकल्पों की बदौलत हम आजाद देश की हवा ले रहे हैं / ऐसे देश भक्त शहीदे आज़म श्री ऊधम सिंह जी को मेरा सत सत नमन /
तो दोस्तों आपको शहीदे आज़म की इस सच्ची दास्तान से क्या सबक मिला और आपको ये कैसी लगी COMMENT BOX में जरूर लिखकर बताइए //
जय हिन्द //
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